कुलदेवी
कुलदेवी माता आशापुरा चौहान राजपूतो की कुल देवी माता शाकम्भरी देवी है क्योकि लुहाच गोत्र की उत्पत्ति चौहान वंश से हुई है इसलिए लुहाच गोत्र की कुल देवी भी माता शाकम्भरी को ही माना जाता है माता शाकम्भरी को यो तो माँ सरस्वती का रूप माना जाता है माता शाकम्भरी का दूसरा नाम माता आशापुरा है जिसको आशापूर्णा के नाम से भी पुकारा जाता है । इसके पीछे एक ऐतिहासिक मान्यता है इसके लिए हमें इतिहास की तह को जानना अति आवश्यक है। जिला जयपुर मे शाम्भर नाम का एक छोटा सा ऐतिहासिक क़स्बा है जो की पहले चौहान वंश के राजा वाक्पतिराज प्रथम की राजधानी थी।जिसका शासन सन 917- 944 ईसवी तक रहा । उस राजा के तीन पुत्र थे , सबसे बड़े पुत्र का नाम विंध्यराज चौहान, सिंहराज चौहान और छोटे पुत्र का नाम लक्ष्मण सिंह चौहान था। राजा वाक्पतिराज की मृत्यु के पश्चात विंध्यराज चौहान को बड़ा होने के कारण सन 944 ईसवी मे राजसिंहासन का उत्तराधिकारी बना दिया गया विंध्यराज चौहान का शासन काल बहुत कम समय ही रहा क्योकि उसी वर्ष उसकी मृत्यु हो गयी और नियम के मुताबिक सन 944 ईसवी मे उसके दूसरे बेटे सिंहराज चौहान को राजसिंहासन का उत्तराधिकारी बना दिया गया जबकि लक्ष्मण सिंह को एक छोटी से जागीर का कार्यभार दिया गया जो बड़े भाई सिंहराज के अधीन ही आती थी लक्ष्मण सिंह बहुत ही बहादुर, कर्मठ, धार्मिक व् माँ शाकम्भरी के भगत थे उनकी यह महत्वकांशा थी कि वह भी राजा बने लकिन शाम्भर मे रहते हुए यह असम्भव था वह बड़े भाई का बहुत आदर करते थे इसलिए राजघराने मे कोई कलह नहीं चाहते थे और वह सन 956 ईसवी मे अपनी पत्नी व् एक सेवक के साथ शाम्भर को त्यागकर पुश्कर आ गए। यहाँ पवित्र कुंड मे स्नान कर शिवालिक की दुर्गम पहाड़ियों को पार करते हुए पाली के तरफ प्रस्थान किया, पाली उस समय सप्तशत राज्य कि राजधानी थी जिस पर एक गुजरती सामंत चावड़ा का अधिपत्य था वह आलसी व् असमर्थ शासक था जिससे वहाँ कि जनता अप्रसन्न थी। रास्ते मे नाडोल शहर के नजदीक उन्होंने नीलकंठ महादेव मंदिर मे पूजा कर रात वही पर बिताई, सुबह जब पुजारी ने उनसे पूछा कि आप कौन हो और कहाँ जा रहे हो तो लक्ष्मण सिंह ने सब वर्तान्त व्यक्त कर दिया हुए अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि मै अपने दम पर कुछ करना चाहता हूँ तब पुजारी ने सामंत से बात करके नाडोल कस्बे का नगर अध्य्क्षय बना दिया। जैसा कि ऊपर बता दिया गया है कि शासक कमजोर था और गुजरात से बैठे - बैठे ही शासन चलता था इसलिए मेद जनजाति के लोग बार-बार हमला कर नाडोल शहर को लूट लेते थे। एक बार कि बात है कि एक दिन मेदो ने शहर पर भारी हमला किया लक्ष्मण सिंह क्योकि शहर कि सुरक्षा का जिम्मेदार भी था और योद्धा भी था दोनों तरफ से आमने - सामने का युद्ध हुआ और अंत मे उसने मेदो को मार भगाया लेकिन इसमें वह खुद भी घायल होकर बेहोश हो गया रात को माता शाकम्भरी के दर्शन हुए और माता ने लक्ष्मण सिंह से उसकी इच्छा पूछी तब लक्ष्मण सिंह ने सप्तशत राज्य का राजा बनने की इच्छा जाहिर की माता ने कहा तथास्तु ! ओर साथ ही बताया कि मालवा के तरफ से 1200 घोड़े आयेंगे आप उन पर केसर जल का छिड़काव करना इससे उनकी प्राकृतिक सूरत व् आकृति मे बदलाव आ जायगा आप उनसे अपनी सेना तैयार करना। सुबह वही हुआ जो माता ने आशीर्वाद दिया था इस प्रकार लक्ष्मण सिंह ने एक अजय सेना तैयार की इसके दम पर उसने सब उपदर्वी मेदो को राज्य से मार भगाया इसके बाद राज्य का नाम सप्तशत से नाडोल कर दिया गया और राजा का नाम लक्ष्मण सिंह से लाखणसी पड़ा और गुजरात के सामंत ने सन 958 ईसवी लाखणसी को ही राज्य का राजा घोषित कर दिया। क्योकि लाखणसी माँ का भक्त था ओर माँ की कृपिया से उसके मन की आशा पूरी हुई थी इसके फलस्वरूप लाखणसी महाराज ने माँ के नाम का एक मंदिर बनवाया और वह मंदिर आशापुरा माँ के नाम से परसिद्ध हुआ क्योकि माता अपने हर भक्त की इच्छा पूरी करती है इसलिए लोग आशापूर्णा के नाम से भी पुकारते है माता आशापूर्णा का हर वर्ष चैत व् सावन महीने की नवरात्री तथा माघ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मेला लगता है यह मंदिर अजमेर - अहमदाबाद रेलमार्ग पर रानी रेलवे स्टेशन से 21 किलोमीटर दूर है । *जय हो माता आशापूर्णा की *