इतिहास
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ज्ञानपुर गाँव का इतिहास
ज्ञानपुर गाँव पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले का मध्यम आबादी का गाँव है। यह जिला मुख्यालय से 10 किलो मीटर दूर स्थित है। इसके पूर्व में सिकंदरपुर, चौधरपुर, पश्चिम में उचेती,हकीमपुर, मिठनपुर,उत्तर में जेवड़ी, जेवड़ा, सलेमपुर और दक्षिण में शाहआलमपुर, बहलोलपुर मिल्क और तैया गाँव की सीमा लगती है। इन सब सीमावर्ती गाँवों से पक्का सड़क से संपर्क है। इस गाँव का खेड़ा लुहाच का खेड़ा है। इसकी कुल आबादी लगभग 1800 लोगों की है जिसमें से लगभग 1600 लोग लुहाच गौत्र के हैं। लुहाच जनसंख्या गाँव की कुल आबादी का 90% है।
इस गाँव का कुल रकबा लगभग 6000 बीघा है जिसमें से 5500 बीघा लुहाच गौत्र के लोगों के पास है। लुहाच गौत्र के लोग बहुत मेहनतकस हैं जिनका शदियों से मुख्य पेश खेती बाड़ी रहा है। यही कारण है कि यहाँ के लुहाच गौत्र के लोगों ने आस पास के गाँवोंकी जमीन खरीद ली। इस गाँव में लुहाच के अलावा बाजवा गौत्र के लोग भी रहते हैं लेकिन उनकी आबादी बहुत कम है। गन्ना यहाँ की मुख्य फसल है जिसकी पास के चीनी मील में पिराई होती है। यह गाँव राष्ट्रीय राजमार्ग से महज 10 किलो मीटर उत्तर में पड़ता है। इस गाँव में 1 मंदिर, 1 प्राथमिक स्कूल, 1 माध्यमिक स्कूल, 1 पंचायत घर और 1 अंगनबाड़ी केंद्र है।
इस गाँव के प्रथम लुहाच पुरुष जोहरी नाँधा से पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लिए निकले पहले जत्था का हिस्सा थे। नाँधा वंशावली की 29 वीं पीढ़ी के दुलारो राम के तीन बेटे थे।
तीनों भाई पहले जत्थे के तहत यमुना पर कर कुचेसर के पास नली हुसैनपर पहुँच गए। यहाँ आकर पता चला कि कुचेसर रियासत का राजा दलाल गौत्र से हैं और राजा के पूर्वज हरियाणा से आए थे। तीनों भाइयों ने राजा से अपनी रियासत में रहने के लिए जगह और खेती के लिए जमीन मांगी। राजा ने यहाँ से कुछ किलो मीटर आगे एक नंगला में डेरा डालने की इजाजत दे दी। तीनों भाई इस नंगला पर रुक गए। जगह पसंद आ गई। तीनों भाइयों ने योजना बनाई कि एक भाई यहाँ रुक जाए और बाकी के दो भाई और आगे चल कर कोई दूसरी जगह जाकर देखते हैं। इस प्रकार उग्रसैन इसी जगह पर रुक गया। उस समय यहाँ कोई बसती नहीं थी। धीरे धीरे आबादी बढ़ने लगी और कालान्तर में एक गाँव का रूप ले लिया। इस लिए इस गाँव का नाम नंगला उग्रसैन रखा गया।
होराम और जोहरी के परिवार का कारवाँ यहाँ से और आगे बढ़ा और बुलन्दशहर के पास भंडोली पहुँच गया। जगह रहने लायक देख कर होराम ने यही बसने का मन बना लिया। इस प्रकार होराम का परिवार यहीं पर बस गया। होराम के दो बेटे थे। उनके नाम हेत राम और बीरम सिंह थे। हेत राम यहीं पर रह गया जब कि उसका भाई बीरम सिंह अपने ताऊ जोहरी के साथ आगे बढ़ गया। दोनों परिवार यहाँ से आगे गहना होते हुए मुरादाबाद जिले के ज्ञानपुर गाँव में पहुँच गए। जोहरी यहीं पस बस गया। उस समय यहाँ कोई आबादी नहीं थी। जोहरी ने ही इस गाँव की नींव रखी थी । इस लिए ज्ञानपुर का खेड़ा लुहाच का खेड़ा माना जाता है।
एक अन्य मत के अनुसार जोहरी के चारों बेटों ने अंग्रेज हकूमत के लिए बहुत काम किया था। इससे खुश होकर अंग्रेज हकूमत ने इस परिवार को इनाम के रूप में मुरादाबाद और सम्भल के बीच में 5 गाँव का रकबा देना चाहा लेकिन लुहाच परिवार ने इसे लेने के लिए मना कर दिया। इस परिवार ने मुरादाबाद के पास 500 बीघा जमीन की बड़ी झील के किनारे डेरा डाल दिया और यहीं बसने का मन बना लिया। बाद में यही डेरा एक गाँव के रूप में उभरता गया। इसी गाँव को ज्ञानपुर के नाम से जाना जाने लगा।
ज्ञानपुर से कालान्तर में कई गाँव में विस्थापन हुआ। ये गाँव हैं छज्जा नंगला, दानशाह मिलक, बाबू खेड़ा, मुंडा खेड़ी और दरियापुर। छज्जा नंगला से फिर एक अन्य गाँव घरोंट में विस्थापन हुआ। ज्ञानपुर में इस समय लुहाच परिवार की 40 वीं पीढ़ी चल रही है।