इतिहास
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पाडला गाँव का इतिहास
पाडला गाँव जिला कैथल का एक बहुत बड़ा गाँव है। यह गाँव कैथल से संगरूर सड़क पर जिला मुख्यालय से 10 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। इसके पूर्व में गढ़ी पाडला, मानस पश्चिम में दिलोंवाली, गूणा, दूदरेहड़ी, मालखेड़ी, उत्तर में बावा लडाना, बूढ़ा खेड़ा, चक पाडला और दक्षिण में छोद, भानपुरा और दवाल गाँव की सीमा लगती है। सभी गाँव से पक्की सड़क द्वारा संपर्क है। इस गाँव की लगभग 8000 लोगों की आबादी है जिसमें 14 परिवार लुहाच गौत्र के हैं। पाडला की सीमा काफी बड़ी है जिसके तहत 52000 हजार बीघा जमीन है। इसमें से 500 बीघा जमीन लुहाच गौत्र के लोगों के पास है। जमीन बहुत उपजाऊ है। सिचाई ट्यूबवेल और नहर के पानी से होती है। गाँव में दो स्कूल, एक डिस्पेंसरी,एक पशु अस्पताल, पाँच जोहड़ और तीन मंदिर हैं। पाडला में लुहाच के अलावा गिल,सिंदर, सिवाच, गोयत, बेनीवाल, गोड़िए और राजपूत जाति की जनसंख्या भी है।
इस गाँव के लुहाच पूर्वज वर्तमान चरखी दादरी जिले के नाँधा गाँव से आए थे। नाँधा की 30वीं पीढ़ी के गोविंद राम के बेटे बाग़पत का परिवार लगभग 1775 ईस्वी में पानी की तलास में उत्तर दिशा में चलपड़ा। उस समय पानी की तलास में नाँधा से यमुना पार और सुतलज की तराई के इलाकों की तरफ बहुत सारे लुहाच परिवार विस्थापन कर चुके थे। बागपत का परिवार भी दादरी, महम होते हुए वर्तमान रोहतक जिले के चिड़ी गाँव में आकर रुक गया। यह गाँव मुस्लिम बाहुल्य था इस कारण कुछ दिन यहां रुक कर कैथल की तरफ चल पड़ा। कैथल से लगभग 11 किलो मीटर पहले एक ऊंची जगह पर एक छोटा सा गाँव पारावीक में आकर रुक गया। इस गाँव में विभिन्न गौत्र के लोग रहते थे। यहाँ कई साल रहने के बाद एक प्राकृतिक आपदा की घटना हुई जिसके कारण यह गाँव बर्बाद हो गया। ऐसा माना जाता है किशायद भूकंप आया होगा जिसके करण सब मकान गिर गए होंगे । इस घटना के उपरान्त जो परिवार बचे थे वह अलग अलग दिशाओं में चले गए। बागपत के वंशज एक किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में आकर रहने लगा। उनके साथ कुछ अन्य परिवार भी वहाँ आकर बस गए। इस नए गाँव का का नाम पाडला रखा गया। आजकल पाडला में लुहाच के अतिरिक्त राजपूत और कई अन्य जाति व गौत्र के लोग रहते हैं।
एक अन्य मत के अनुसार पाडला गाँव की नींव 1488 ईस्वी में पड़ी थी। उस समय गाँव में राजपूत व मुसलमान परिवार रहते थे। कार्तिक की बीमारी के दौरान लगभग गाँव की सारी आबादी समाप्त हो गई। ऐसा इस लिए हुआ माना जाता है कि टोहाना के पास के एक बुनकर ने गाँव को श्राप दे रखा था कि गाँव एक बार उजड़ होकर फिर दोबारा आबाद होगा।
इस लिए बाद में फिर एक लुहाच लड़की जो गिल गौत्र की बहू थी और दो भाई जो लुहाच गौत्र से थे इस गाँव में आकर रहने लगे। दोनों भाइयों ने एक तिहाई जमीन अपनी बहन को दे दी और दो तिहाई अपने पास रख ली। आगे चल कर लड़की के वंशज की बढ़ोतरी ज्यादा हो गई और लुहाच की कम हुई। इसी कारण आज लुहाच गौत्र के केवल 14 परिवार हैं जबकि गिल गौत्र के तीन गुना है।