इतिहास

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गुगाहेड़ी गाँव का इतिहास


गुगाहेड़ी गाँव रोहतक जिला की महम तहसील का एक छोटा सा गाँव है। यह जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में है। इसके पूर्व में बैंसी, खरक जाटान, उत्तर में किलाजफ्फरगढ, दौरड़,पश्चिम में फरमाना और दक्षिण में निडाना गाँव की सीमा लगती है। यह गाँव सभी सीमावर्ती गाँव से पक्की सड़क से जुड़ा हुआ है। इसका नजदीक रेलवे स्टेसन किला जफ्फरगढ लगभग 4 किलोमीटर दूर है। नारनौल-अम्बाला 352 डी ऐक्सप्रेस वे इसके पूर्व दिशा से होकर गुजरता है।इस गाँव में माध्यमिक स्तर का सरकारी स्कूल है। गाँव में एक बड़ा व एक छोटा तालाब है। इस गाँव में देश के बटवारे तक मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोग रहते थे। इस गाँव के पास 9000 बीघा जमीन थी। पूरी जमीन बरानी होती थी। लोग खेती के लिए बारिश, कुआं व रहट पर ही निर्भर रहते थे। पानी के अभाव के कारण कई कई साल तक अकाल पड़ते थे। किसान अंग्रेजी हुकूमत को कृषि कर भी देने में समर्थ नहीं थे। सरकार ने कर की भरपाई नहीं होने पर जमीन को अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई। उसी समय गाँव वालों की मदद के लिए हाँसी के रहने वाले एक हिन्दू सेठ महताब सिंह आगे आए। सेठ ने मुसलमानों की सारी जमीन का कर सरकार में जमा करा दिया। इसके बदले गाँव की सारी जमीन सरकार ने सेठ को दे दी। सेठ हाँसी से उसी समय पास के गाँव खरक जाटान जो कि हिन्दू बाहुल्य था में आकर रहने लगा। सेठ के तीन बेटे थे। उसने तीनों बेटों को बराबर बराबर जमीन दे दी। अब मुसलमानों के पास कोई जमीन नहीं रही थी।


सन 1947 में आजादी मिलने पर देश का धर्म के नाम पर बटवारा हो गया। इसी कारण इस गाँव में सदियों से रहने वाले मुसलमान परिवार पाकिस्तान चले गए। गाँव में सिर्फ कुछ हिन्दू हरिजन परिवार ही बचे थे। इसी दौरान सेठ महताब के दो बेटे वापस अपने पैतृक स्थान हाँसी चले गए और जमीन लेने से भी मना कर दिया। अब एक बेटा जो खरक जाटान रह गया था वह गुगाहेड़ी आकर रहने लगा। उसके नाम 3000 हजार बीघा जमीन थी। उसके भाइयों की 6000 बीघा जमीन पर सरकार ने कब्जा कर लिया। सरकार ने इस जमीन में से चार स्वतंत्रता सेनानियों को 125 बीघा प्रति सैनिक को मुरबा आबंटित कर दिया। ये स्वतंत्रता सेनानी मैना,भापड़ोदा, बुपनिया और मांडोठी गाँव से थे। इस प्रकार मुसलमानों के जाने के बाद ये चार परिवार सबसे पहले गुगाहेड़ी में आकर बसे। इसके बाद देश के बटवारे के दौरान पाकिस्तान से काफी हिन्दू श्रणार्थी भारत के विभिन्न शिविरों में रहने लगे। ये हिन्दू श्रणार्थी पाकिस्तान में पूरी जमीन जायदाद व घर मकान वहीं छोड़ कर आए थे। उनके पास सिर्फ जमीन के कागजात थे। जब इन श्रणार्थियों को बसाया गया तब कागजात के आधार पर मुसलमानों द्वारा छोड़ी गई जायदाद व घर आबंटित किए गए। इसी आधार पर 1948 ईस्वी में सेठ के दोनों बेटों की बची जमीन और मुसलमानों के खाली पड़े घर इन हिन्दू श्रणार्थियों को दे दिए गए। इस प्रकार गाँव दोबारा आबाद होना शुरू हुआ। क्योंकि सेठ के बेटे के पास अकेले एक तिहाई जमीन थी इस लिए वह गाँव का सबसे धनी परिवार बन गया। उसने गाँव में एक बहुत विशाल कोठी बनाई व 125 बीघा में विभिन फलों का बाग भी लगवाया। यह कोठी आज भी विराजमान है जिसको बाद में 1980 ईस्वी में अमी सिंह लुहाच ने खरीद लिया और सेठ अपनी सब जायदाद बेच कर दिल्ली चला गया। सेठ ने धीरे धीरे जमीन बेचना शुरू कर दिया। उसने सबसे पहले गिरावड़ गाँव के लुहाच परिवार को जमीन बेची। इस प्रकार श्रणार्थियों के बाद इस गाँव में बाहर से आकर बसने वाला गिरावड़ से आया हुआ लुहाच परिवार ही था।इसके अलावा कुछ अन्तराल पर इस गाँव में अन्य गाँव से हिन्दू किसान जमीन खरीद कर रहने लगे। इनमें कटवाल से दूहन, मटिण्डू से दहिया और निंदाना से नेहरा शामिल हैं।


गिरावड़ गाँव के लुहाच वंश से16 वीं पीढ़ी के गोधा राम लुहाच के चार बेटे चुन्नी लाल, फूल सिंह, महीपत सिंह और जयकिशोर थे। गोधा राम के पास गिरावड़ में 65 बीघा जमीन थी। सारी जमीन नहरी और काफी उपजाऊ थी। गोधा राम का बड़ा बेटा चुन्नी लाल काफी बुद्धिमान व होनहार था। पिता के देहांत के उपरान्त घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। चुन्नी लाल पाँच कक्षा तक पढ़ाई करके ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हो गया। उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इराक, सीरिया व मिश्र देशों में लड़ाई में हिस्सा लिया। अपनी प्रतिभा के कारण वह बहुत जल्द सूबेदार के पद तक पहुँच गया। परिवार की जिम्मेदारियों के कारण वह सूबेदार के पद से 1946 में स्वेच्छा से सेना से सेवा निवृत हो गया। उसे पता चला कि गुगाहेड़ी गाँव में सेठ महताब जमीन बेच कर हाँसी जाना चाहता है। चुन्नी लाल ने तुरन्त सेठ से 550 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से 22 एकड़ जमीन का सौदा तय कर लिया। परिवार में यह तय हुआ कि दो बड़े भाई सूबेदार चुन्नी लाल और फूल सिंह गुगाहेड़ी रहेंगे और दोनों छोटे भाई महीपत व जय किशोर गिरावड़ की जमीन को सम्हालेंगे। इस प्रकार 1956 ईस्वी में पहला लुहाच परिवार गुगाहेड़ी में आकर रहने लगा।


गोधा राम लुहाच के बेटों के साथ ही गिरावड़ से ही 17 वीं पीढ़ी के रामानन्द लुहाच के दोनों बेटों ने भी गुगाहेड़ी जाकर जमीन खरीदकर रहने की योजना बनाई। रामानन्द लुहाच के दो बेटे बीर सिंह और अमी सिंह थे। दोनों बहुत मेहनती थे। इस परिवार ने भी 19 एकड़ जमीन एक साथ खरीद ली। इस प्रकार 1956 ईस्वी में अब गिरावड़ से दो लुहाच परिवार इस गाँव में रहने लगे। 1965 ईस्वी में चुन्नी लाल का छोटा भाई जय किशोर भी गिरावड़ से गुगाहेड़ी सपरिवार आ गया। 1978 ईस्वी में महीपत का बड़ा बेटा सुखबीर सिंह भी गुगाहेड़ी आ गया। 1982 ईस्वी में चुन्नी लाल का चौथा भाई महीपत लुहाच भी गिरावड़ से पूरी जायदाद बेच कर गुगाहेड़ी आ गया। इस प्रकार गोधा राम का पूरा परिवार 1982 में गुगाहेड़ी गाँव में बस चुका था। दोनों परिवारों ने खूब मेहनत की और जमीन खरीदते गए। आज गोधा राम परिवार के पास 625 बीघा और रामानन्द परिवार के पास 500 बीघा जमीन है। रामानन्द और गोधा राम परिवार के अतिरिक्त 1958 ईस्वी में हीरा लाल का छोटा बेटा मौजी राम भी सपरिवार गिरावड़ से यहाँ आकर रहने लगा। मौजी राम ने 8 एकड़ जमीन 350 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से खरीद ली। लेकिन अगले ही साल किसी कारण से जमीन बेच कर वापस गिरावड़ आ गया। इस प्रकार आज गुगाहेड़ी में सबसे ज्यादा जमीन लुहाच परिवार के पास है। आज गुगाहेड़ी में सबसे ज्यादा जाट आबादी कटवाल गाँव से आए दूहन गोत्र के किसानों की है जो इस गाँव में 1957 ईस्वी में आए थे।