इतिहास

show vanshavali

मारोत गाँव का इतिहास

 

मारोत गाँव हरियाणा के झज्जर जिले की मातनहेल तहसील का मध्यम आबादी वाला गाँव है। यह जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर और तहसील मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित है। इसके पूर्व में ग्वालीसन, दक्षिण में भिंडावासी, सूरतगढ़, पश्चिम में छूछकवास, इस्लामगढ़ और उत्तर में फोर्टपुरा और टामसपुरा गाँव की सीमा लगती है। सब गाँव से पक्की सड़क से संपर्क है। इस गाँव की कुल आबादी लगभग 6000 लोगों की है जिसमें से लगभग आधी आबादी लुहाच गौत्र के लोगों की है। इस गाँव में बांगड गौत्र का खेड़ा है। हालांकि गाँव में लुहाच और बांगड गौत्र मुख्य हैं लेकिन दलाल, पणजेटा, जाखड़, टोकस, ढाका, सांगवान और पूनिया गौत्र के लोग भी रहते हैं। गाँव में 1 उच्च माध्यमिक स्कूल,1प्राईमरी स्कूल, 1 पशु हस्पताल, 1 दवाखाना, 3 जोहड़, 3 चौपाल और 3 अंगनबाड़ी केंद्र हैं।


इस गाँव के पास शुरू में 9000 बीघा जमीन का रकबा था। बाद में 1970 के दशक में पास के गाँव छुछकवास के बीड़ की 9000 बीघा जमीन भी गाँव के किसानों ने खरीद ली। छुछकवास के पास एक बहुत बड़ा जंगल हुआ करता था जिसको बीड़ छुछकवास के नाम से जाना जाता था। यह जमीन वन विभाग के तहत पड़ती थी। इस बीड़ के आस पास मारोत के आलावा इस्लामगढ़, ग्वालिसन, खेड़ी, मिंडावास, खेतावास, सूरजगढ़, आजाद नगर, भानगढ़ और खापड़वास गाँव पड़ते थे। इन गाँव में हरिजन बावरिया जाति के लोगों की अधिकता थी जिनके पास पूस्तेनी जमीन नहीं थी।


1970 के दशक में हरियाणा में चौधरी बंसी लाल की सरकार थी। चाँद राम जी केंद्र में जहाज रानी मंत्री थे जो कि हरियाणा के रहने वाले थे। उनके सुझाव पर हरियाणा सरकार ने इस बीड़ को साफ करवा कर सब हरिजन बावरिया जाति के लोगों को 1.5 एकड़ के हिसाब से जमीन नाम कर दी। सरकार का यह निर्णय तो ठीक था लेकिन आगे चलकर दो समस्या गई। पहली यह कि हर किसान को उसके खेत तक जाने का रास्ता नहीं मिला। यह संभव भी नहीं था। जिसकी वजह से ये नए किसान अपने खेत में कैसे जाते। दूसरी समस्या यह हुई कि ये छोटे छोटे किसान सरकार को उगाही जमा नहीं कर सके। सरकार और इन छोटे किसानों के सामने समस्या खड़ी हो गई। सरकार को वितीय घाटा होने लगा। इस हालत के कारण आस पास के जाट और यादव किसानों ने इन किसानों का भूमि कर जमा कर के जमीन अपने नाम करा ली। इस प्रकार मारोत गाँव के पास कुल 18000 बीघा जमीन हो गई।


गाँव की सारी जमीन बरानी है। कोई नहर या रजबाहा नहीं है। खेती बारिश के आलावा ट्यूबवेल के पानी पर निर्भर है। गाँव से कुछ दूर से 8 नम्बर ड्रैन गुजरती है। इस से कुछ और दूर जवाहर लाल नेहरू नहर भी गुजरती है। 8 नंबर ड्रैन में 12 महीने पानी रहता है।


सरकार की अनुमति से किसान जमीन के नीचे पाइप लाइन बिछा कर ड्रैन के पानी से अपने खेतों की सिचाई करते हैं। यह तरीका काफी सफल हुआ है। किसान इसके लिए उगाही भी देते है।


इस गाँव के प्रथम लुहाच पुरुष पैंतावास से आए थे। पैंतावास में भी लुहाच गौत्र का खेड़ा है लेकिन इस समय वहाँ पर कोई लुहाच आबादी नहीं है। पैंतावास में इस समय सांगवान गौत्र के लोग रहते है। पैंतावास के लुहाच पूर्वज नाँधा गाँव से आए थे। नाँधा गाँव की वंशावली के मुताबिक 19 वीं पीढ़ी के महाराज लुहाच के चार पुत्र थे। इनके नाम पहाड़ सिंह, भैराज सिंह ,गूगन सिंह और नारायण सिंह थे।  इसमें से नारायण सिंह नाँधा में ही रह गया जब कि भैराज सिंह  मोहला गाँव चले गए। गूगन सिंह बाद में गिरावड़ गाँव चला  गया। चौथा भाई पहाड़ सिंह भी लगभग 1500 ईस्वी में पानी की तलास में सपरिवार पैंतावास गया। उस समय पैंतावास में कोई आबादी नहीं थी। पहाड़ सिंह ने ही इस गाँव की नींव रखी थी इस लिए उसके नाम से मिलता-जुलता नाम पैंतावास पड़ा। यही कारण है कि इस गाँव का खेड़ा लुहाच गौत्र का है। आज भी इस गाँव में लुहाच गौत्र की कोई शादी नहीं होती।


पैंतावास में लुहाच परिवार के लोग लगभग 100 साल तक रहे थे। इसी दौरान इस गाँव में अन्य गौत्र के लोग भी आकर बस गए। इनमें सांगवान गौत्र के लोगों की आबादी सबसे ज्यादा थी। वैसे तो पूरे पैंतावास का रकबा लुहाच गौत्र के नाम था लेकिन अन्य गौत्र के लोगों को खेती करने के लिए कुछ जमीन दे रखी थी। जींद रियासत के तहत इस गाँव की सीमा थी। राजा के पास भूमि कर जमा होता था। नीमली गाँव की वंशावली के अनुसार 23 वीं पीढ़ी में ओनाड़ा राम लुहाच पूरे गाँव की जमीन का मालिक था। उसने सांगवान गौत्र के एक किसान को कर जमा करने की जिम्मेदारी दी जिसे उसने बखूबी से निभाया। क्योंकि पैंतावास के अलावा बाकी गाँव से भूमि कर की उगाही समय पर नहीं हो पाती थी इस लिए राजा ने पैंतावास के इस सांगवान किसान को पुरस्कृत करने के लिए बुलाया और उसके नाम सारे गाँव की जमीन कर दी।


सांगवान किसान ने यह बात काफी दिन तक  ओनाड़ा लुहाच से छुपा कर रखी। जब अगली बार कर उगाही सांगवान किसान के नाम से आई तब ओनाड़ा के परिवार को इसका पता चला जिससे उसको काफी दुख हुआ। ओनाड़ा ने उसको कहा कि आप ने हम से धोखा किया है इस लिए हम अब यहाँ नहीं रहेंगे। इस प्रकार पहाड़ सिंह के वंशज 4 पीढ़ी पैंतावास में रहकर लगभग 1600 ईस्वी में ओनाड़ा के दोनों बेटे नींबू राम (नेम सिंह) छू छू राम (छबीला राम) और उनका भानजा रुलिया राम नीमली गए। भाणजा रुलिया राम चहार गौत्र से था। नीमली में कुछ दिन रुककर वह भी नीमली से लगभग 2.5 किलोमीटर दूर जाकर रहने लगा। बाद में उसी के नाम पर उस जगह का नाम रुलियावास पड़ गया।

 

ओनाड़ा राम का छोटा बेटा छू छू राम उर्फ छबीला राम भी कुछ समय नीमली में रहने के बाद परिवार सहित छुछकवास जो कि उस समय एक मुस्लिम रियासत हुआ करती थी में रहने के इरादे से वहाँ गया। राजा से वहाँ रहने और परिवार के गुजारे के लिए कुछ जमीन मांगी जिसको राजा ने स्वीकृति नहीं दी। ओनाड़ा राम वहाँ सेमारोत गाँव में गया जो कि झज्जर से मात्र 10 किलोमीटर पहले था। इस गाँव में पहले से बाँगड़ गौत्र के लोग रहते थे। उन्होंने छू छू राम लुहाच को अपने संग बसने की सहमति दे दी। इस प्रकार छू छू लुहाच यहीं पर बस गए।छू छू राम से अब तक मारोत में 22 वीं पीढ़ी चल रही है। इस गाँव से कालांतर में दो विस्थापन हुए। पहला 30 वीं पीढ़ी के भींवा राम जो कि राजस्थान के नागौर जिले के भींवपुरा जिसे उस समय ठिकरिया की ढाणी के नाम से जाना जाता था गाँव में और दूसरा 32 वीं पीढ़ी के प्रेम सुख हरियाणा के रोहतक जिले के रिटोली गाँव में आकर बस गए।