इतिहास

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अमरपुर गाँव का इतिहास

 

अमरपुर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मेरठ जिले की मवाना तहसील का गंगा किनारे बसा एक छोटा सा गाँव है। यह जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर पूर्व दिशा में और तहसील मुख्यालय से 25 किलोमीटर दक्षिण दिशा में दिल्ली-देहरादून और दिल्ली-लखनऊ राजमार्ग के मध्य स्थित है। इसके पूर्व में माछरा, कासमपुर और नगली अब्दुल्ला, पश्चिम में भटीपुर, उत्तर में खंडरावली और पसबाड़ा, दक्षिण में हसनपुर कलाँ गाँव की सीमा लगती है। सब गाँव से पक्की सड़क मार्ग से संपर्क है।इसका नजदीकी रेलवे स्टेसन मेरठ छावनी है जो कि27 किलोमीटर दूर है। इस गाँव की कुल आबादी लगभग 3000 लोगों की है जिसमें लगभग 150 लुहाच गौत्र के लोग रहते हैं। इस गाँव में लुहाच के अलावा काजला, दुलट, हुड्डा, सांगवान, राणा और मलिक गौत्र के लोग रहते हैं। अमरपुर गाँव का कुलरकबा लगभग 3200 बीघा है जिसमें से 350 बीघा जमीन लुहाच गौत्र के लोगों के पास है।


इस गाँव के लुहाच पूर्वजों की निकासी हापुड़जिले के नली हुसैनपुर गाँव और गाजियाबाद जिले के गढ़ी गुलडहर गाँव से लगभग 1850 ईस्वी में हुई थी। नली हुसैनपुर गाँव की वंशावली पीढ़ी संख्या 33पर धूम सिंह के पाँच बेटे थे। इनके नामझँडू राम, बसाऊ राम, शेर सिंह, मान सिंह और गुलाब सिंह थे। बसाऊ को छोड़कर बाकी भाई गाजियाबाद जिले के गढ़ी गुलडहर में चले गए। शेर सिंह और झँडू राम अविवाहित थे।


 35 वीं पीढ़ी के इन्दराज सिंह सुपुत्र मान सिंह और रामजी लाल सुपुत्र गुलाब सिंह गढ़ी गुलडहर से सपरिवार अमरपुर आकर बस गए। इन्दराज ने यहाँ आकर अपनी बेटी बीजेन्दरी की शादी मेरठ जिले के समसपुर गाँव में कर दी। बेटी की शादी के बाद इन्दराज स्वर्ग सिधार गए। इसके बाद बीजेन्दरी ने अपने सभी भाई-बहनों को अपने पास बुला लिया। इसप्रकार बिजेंद्र सिंह सुपुत्र इन्दराज अमरपुर से समसपुर जाकर बस गया।


रामजी लाल ने अमरपुर में 300 बीघा जमीन खरीद ली। उसके दो बेटे रघुबीर सिंह और दिलावर सिंह हुए। दिलावर सिंह की शादी मुकुंदी देवी से हुई थी। मुकुंदी एक लड़की को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई। अब दिलावर सिंह के कोई लड़का नहीं था। इसी दौरान गाँव में एक और घटना घटित हुई जिसका संबंध दिलावर सिंह से है।


जैसा कि ऊपर बताया गया है कि नली हुसैनपुर से धूम सिंह के चार बेटे गढ़ी गुलडहर चले गए थे और एक बेटा बसाऊ वहीं पर रह गया। बसाऊ ने अपने इकलौते बेटे नारायण सिंह की शादी अमरपुर में कर दी थी। नारायण सिंह के कोई साला नहीं था। इस लिए उसका बेटा रामदास अपने ननिहाल अमरपुर में आकर बस गया। रामदास की शादी होने के बाद आकस्मिक मौत हो गई। उस समय उसकी पत्नी बेदकोर गर्भवती थी। समस्या गंभीर हो गई। बेदकोर को देखने वाला अब परिवार में कोई नहीं रहा। बेदकोर लुहाच परिवार की बहु थी। इसी समय दिलावर सिंह की पत्नी की भी मौत हो चुकी थी। इसलिए रघुबीर सिंह और दिलावर सिंह ने योजना बनाई कि बेदकोर को दिलावर सिंह के पल्ला लगा दी जाए। इससे दिलावर का भी वंश चल पड़ेगा और बेदकोर को भी सहारा मिल जाएगा।


जब बेदकोर दिलावर की पत्नी बन गई तो उसकी कोख से रामदास के नाम का एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम विजयपाल रखा गया। विजयपाल के नाम रघुबीर सिंह और दिलावर सिंह ने अपने अपने हिस्से की जमीन से 30-30 बीघा जमीन भी नाम कर दी। अब रघुबीर और दिलावर के पास 120-120 बीघा जमीन रह गई। बेदकोर कि कोख से दिलावर के नाम से दो लड़के हरपाल और ओमपाल पैदा हुए। इस प्रकार अमरपुर में नली हुसैनपुर और गढ़ी गुलडहर से आए दो परिवारों की संतान हैं।