इतिहास
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रानीला गाँव का इतिहास
रानीला गाँव हरियाणा के चरखी दादरी तहसील और जिला का एक बहुत बड़ा गाँव है जो किजिला मुख्यालय से 20 किलो मीटर दूर है। यह गाँव दादरी-रोहतक रोड पर स्थित सांजरवास से लिंक रोड पर 5 किलो मीटर दूर स्थित है। इसके पूर्व में पिलाना, बास, दक्षिण-पूर्व में अचिणा,दक्षिण में भागेश्वरी, पश्चिम में साँवड, सांजरवास-फौगाट, उतर-पश्चिम में बोंद कला और उतर-पूर्व में ऊण गाँव की सीमा लगती है। सब गाँव से पक्की सड़क से संपर्क है। गाँव के पास 44000 बीघा जमीन है जिसमें से 300 बीघा लुहाच परिवार के पास है। सब जमीन नहरी है जिसकी सिचाई बोंद नहर से निकली भागेश्वरी रजबाहा और सांजरवास रजबाहा से होती है। गाँव की आबादी 15000 लोगों की है जिसमें से 20 परिवार लुहाच गौत्र के लोगों के हैं। गाँव में 5 बड़े जोहड़, 21 मंदिर जिसमें से आदि नाथ जैन मंदिर सबसे मुख्य है। इसके अलावा एक प्राइमेरी स्कूल, दो सीनियर सेकेंडरी स्कूल, एक हस्पताल, एक पशु हस्पताल, 6 चौपाल और 15 आंगनबाड़ी हैं। गाँव में लुहाच के अतिरिक्त पवार राजपूत, साहू, गिल, लोहचब, राठी, कादियान, लोर, मान और बुधवार गौत्र के लोग रहते हैं। इनके अतिरिक्त 20 अन्य जाति के लोग भी रहते हैं।
रानीला गाँव के प्रथम लुहाच पुरुष बालको राम नीमली गाँव से आए थे। बालको राम 1839 ईस्वी में सपरिवार नजदीक के गाँव रानीला में आकर बस गया। बालको के एक मात्र बेटा दया राम ने 1850 ईस्वी में इस नए गाँव में जमीन खरीद ली। दया राम के दो बेटे थे । उनके नाम थे विजय लुहाच और नर सिंह लुहाच । दोनों के वंशज ने धीरे धीरे और जमीन खरीद ली और आज लुहाच परिवार के पास लगभग 300 बीघा जमीन है। बालको के वंशज की रानील में 8 वीं पीढ़ी चल रही है। लुहाच परिवार में इस गाँव की दूसरी पीढ़ी के विजय लुहाच का पोता राम स्वरूप बहुत ही बहादुर और ताकतवर था। ऐसी कहावत है कि वह अकेला 20 लोगों से लड़ाई में सामना करने का मादा रखता था। उसका बेटा राम कुमार भी एक बहुत नामी पहलवान था जिसका दूर दूर तक पहलवानी में नाम था। आगे चल कर 5 वीं पीढ़ी के दीप चंद लुहाच का परिवार भी बहुत पढ़ा लिखा था। इनका बेटा शुभ राम काफी होनहार व शिक्षित था। उसने अपनी प्रतिभा के दम पर रोहतक में भूतपूर्व विधायक राज सिंह के सिनेमा घर संगीता को 30 साल चलाया। आगे चल कर उसनें अपनी मेहनत के दम पर न केवल रानीला में बल्कि राजस्थान और छतीसगढ़ में सैकड़ों एकड़ खेती की जमीन खरीद ली। दूसरा बेटा महाबीर सिंह भी कम प्रतिभाशाली नहीं था। उसनें 1981 में पंजाब यूनिवर्सिटी से एम ए बी एड की पढ़ाई कर अध्यापक बन गए। वह चौधरी चरण सिंह के अनुयायी हैं।