इतिहास
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भींवपुरा गाँव का इतिहास
भींवपुरा गाँव राजस्थान के नागौर जिले की नावाँ तहसील का एक मध्यम आबादी वाला गाँव है। यह जिला मुख्यालय से 180 किलोमीटर और तहसील मुख्यालय से 43 किलोमीटर दूर स्थित है। यहराजस्थान के तीन जिलों नागौर, जयपुर और सीकर की सीमा के तिराहा पर स्थित है। इसके पूर्व में सलहदीपुरा, रामजीपुरा, उत्तर में किशनगढ़ रेनवाल, दक्षिण में मांडा भीम सिंह और पश्चिम में मिंडा गाँव की सीमा लगती है। सलहदीपुरा, रामजीपुरा और मिंडा गाँव पक्की सड़क से और किशनगढ़ रेनवाल और मांडा भीम सिंह गाँव कच्चे रास्ते से जुड़े हैं। इस गाँव की कुल आबादी लगभग 2000 लोगों की है जबकी लुहाच गौत्र के लगभग 150 लोग रहते हैं। इसमें लुहाच गौत्र के अलावा नेटवाल, बीजारनिया, जांघू, फुलफकर, औंला और ऊड़ी गौत्र के लोग रहते हैं। इस गाँव में एक माध्यमिक स्कूल है जिसका नाम शहीद बंसी लाल माध्यमिक स्कूल है। बंसी लाल भींवा राम लुहाच के दूसरे नम्बर के बेटे थे। वह केन्द्रीय सुरक्षा बल पुलिस की 7 वीं बटालियन में सिपाही के पद पर सेवारत थे। बंसी लाल 2006 ईस्वी में असम के तिनसुकिया में उग्रवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। गाँव में उनकी स्मृति में शहीदी स्मारक बना हुआ है। इस गाँव में इसके अतिरिक्त 3 मंदिर, 1 चौपाल, 2 जोहड़ और 2 आंगनवाड़ी केंद्र भी हैं।
सन 1992 से पहले इस गाँव का नाम भींवपुरा नहीं था। इसको ठिकरिया खुर्द की ढाणी के नाम से जाना जाता थाजो कि मिंडा ग्राम पंचायत के तहत पड़ती थी। उस समय तक मिंडा ग्राम पंचायत के तहत छः गाँव आते थे। ठाकरिया खुर्द की ढाणी में भीवा राम नाम का एक अध्यापक होता था। उसका नाम समाज और प्रशासन दोनों में चर्चित था क्योंकि वह बहुत ईमानदार औरशिक्षित होने के साथ साथ लगनशील इन्सान भी थे। वह मिंडा ग्राम पंचायत के लगातार तीन बार सरपंच भी रहे थे। उसने न केवल अपनी ढाणी के लिए बल्कि उसकी जिम्मेदारी के तहत जितने भी गाँव थे उन सबके उत्थान के लिए प्रशासन से मिलकर बहुत काम कराए थे। बादमेंअपने अध्यापक के व्यवसाय से त्यागपत्र देकर राजनीति में उतर गए। अपने सामाजिक व राजनीतिक काम के कारण उसने अपनी ढाणी को एक स्वतंत्र गाँव का दर्जा दिलाने में सफलता हासिल की। इस प्रकार ठिकरिया की ढाणी का नाम बदलकर सरकार ने उसी के नाम से भींवपुरा रख दिया। इस लिए इस गाँव के जनक भींवा राम जी को माना जाता है।
इस गाँव के प्रथम लुहाच पुरुष पांचों राम लुहाच हरियाणा के झज्जर जिले के मारोत गाँव से चलकर लोहागढ़, बाजियावास और लाडनू होते हुए लगभग 1800 ईस्वी में सपरिवार ठिकरिया की ढाणी पहुचे थे। मारोत गाँव की वंशावली के अनुसार पीढ़ी संख्या 29 में जन्मे नारायण सिंह लुहाच के तीन बेटे थे। इनके नाम जयमल, भूरा राम और पाँचू राम थे।
जयमल और भूरा राम मारोत में ही रह गए जबकि पाँचू राम सपरिवार राजस्थान के लोहागढ़, बाजियावास, लाडनू होते हुए ठिकरिया की ढाणी जो कि नागौर जिले के मिंडा गाँव का हिस्सा था में आकर रहने लगे। पाँचू राम के चार बेटे थे जिसमे से सिर्फ रूपा राम ही शादी शुदा था। उसी के वंशज आज इस गाँव में रहते हैं। पाँचू राम से अब तक इस गाँव में लुहाच गौत्र की 11 वीं पीढ़ी चल रही है।आगे चलकर इस गाँव से आसपास के पाँच अन्य गाँव में लुहाच परिवार के लोगों का विस्थापन हुआ। ये गाँव हैं सीकर जिले के धींगपुर की सूरत राम की ढाणी, खाटू श्याम और सारगोंठ और जयपुर जिले का किशानगढ़ रेनवाल और पुनाना।
भींवपुरा गाँव का इतिहास
भींवपुरा गाँव राजस्थान के नागौर जिले की नावाँ तहसील का एक मध्यम आबादी वाला गाँव है। यह जिला मुख्यालय से 180 किलोमीटर और तहसील मुख्यालय से 43 किलोमीटर दूर स्थित है। यहराजस्थान के तीन जिलों नागौर, जयपुर और सीकर की सीमा के तिराहा पर स्थित है। इसके पूर्व में सलहदीपुरा, रामजीपुरा, उत्तर में किशनगढ़ रेनवाल, दक्षिण में मांडा भीम सिंह और पश्चिम में मिंडा गाँव की सीमा लगती है। सलहदीपुरा, रामजीपुरा और मिंडा गाँव पक्की सड़क से और किशनगढ़ रेनवाल और मांडा भीम सिंह गाँव कच्चे रास्ते से जुड़े हैं। इस गाँव की कुल आबादी लगभग 2000 लोगों की है जबकी लुहाच गौत्र के लगभग 150 लोग रहते हैं। इसमें लुहाच गौत्र के अलावा नेटवाल, बीजारनिया, जांघू, फुलफकर, औंला और ऊड़ी गौत्र के लोग रहते हैं। इस गाँव में एक माध्यमिक स्कूल है जिसका नाम शहीद बंसी लाल माध्यमिक स्कूल है। बंसी लाल भींवा राम लुहाच के दूसरे नम्बर के बेटे थे। वह केन्द्रीय सुरक्षा बल पुलिस की 7 वीं बटालियन में सिपाही के पद पर सेवारत थे। बंसी लाल 2006 ईस्वी में असम के तिनसुकिया में उग्रवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। गाँव में उनकी स्मृति में शहीदी स्मारक बना हुआ है। इस गाँव में इसके अतिरिक्त 3 मंदिर, 1 चौपाल, 2 जोहड़ और 2 आंगनवाड़ी केंद्र भी हैं।
सन 1992 से पहले इस गाँव का नाम भींवपुरा नहीं था। इसको ठिकरिया खुर्द की ढाणी के नाम से जाना जाता थाजो कि मिंडा ग्राम पंचायत के तहत पड़ती थी। उस समय तक मिंडा ग्राम पंचायत के तहत छः गाँव आते थे। ठाकरिया खुर्द की ढाणी में भीवा राम नाम का एक अध्यापक होता था। उसका नाम समाज और प्रशासन दोनों में चर्चित था क्योंकि वह बहुत ईमानदार औरशिक्षित होने के साथ साथ लगनशील इन्सान भी थे। वह मिंडा ग्राम पंचायत के लगातार तीन बार सरपंच भी रहे थे। उसने न केवल अपनी ढाणी के लिए बल्कि उसकी जिम्मेदारी के तहत जितने भी गाँव थे उन सबके उत्थान के लिए प्रशासन से मिलकर बहुत काम कराए थे। बादमेंअपने अध्यापक के व्यवसाय से त्यागपत्र देकर राजनीति में उतर गए। अपने सामाजिक व राजनीतिक काम के कारण उसने अपनी ढाणी को एक स्वतंत्र गाँव का दर्जा दिलाने में सफलता हासिल की। इस प्रकार ठिकरिया की ढाणी का नाम बदलकर सरकार ने उसी के नाम से भींवपुरा रख दिया। इस लिए इस गाँव के जनक भींवा राम जी को माना जाता है।
इस गाँव के प्रथम लुहाच पुरुष पांचों राम लुहाच हरियाणा के झज्जर जिले के मारोत गाँव से चलकर लोहागढ़, बाजियावास और लाडनू होते हुए लगभग 1800 ईस्वी में सपरिवार ठिकरिया की ढाणी पहुचे थे। मारोत गाँव की वंशावली के अनुसार पीढ़ी संख्या 29 में जन्मे नारायण सिंह लुहाच के तीन बेटे थे। इनके नाम जयमल, भूरा राम और पाँचू राम थे।
जयमल और भूरा राम मारोत में ही रह गए जबकि पाँचू राम सपरिवार राजस्थान के लोहागढ़, बाजियावास, लाडनू होते हुए ठिकरिया की ढाणी जो कि नागौर जिले के मिंडा गाँव का हिस्सा था में आकर रहने लगे। पाँचू राम के चार बेटे थे जिसमे से सिर्फ रूपा राम ही शादी शुदा था। उसी के वंशज आज इस गाँव में रहते हैं। पाँचू राम से अब तक इस गाँव में लुहाच गौत्र की 11 वीं पीढ़ी चल रही है।आगे चलकर इस गाँव से आसपास के पाँच अन्य गाँव में लुहाच परिवार के लोगों का विस्थापन हुआ। ये गाँव हैं सीकर जिले के धींगपुर की सूरत राम की ढाणी, खाटू श्याम और सारगोंठ और जयपुर जिले का किशानगढ़ रेनवाल और पुनाना।