इतिहास
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मोहला गाँव का इतिहास
मोहला हरियाणा के हिसार जिले की बांस पेटवाड़ तहसील का एक काफी बड़ा गाँव है जो कि हांसी-जुलाना सड़क पर तहसील मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित है। यह गाँव तीन जिलों हिसार, जींद और रोहतक की सीमा पर बसा हुआ है। इस गाँव के पूर्व में बढ़छपर, उत्तर में खेड़ा राँगड़ान, भाकलाना, दक्षिण में पूठी और पश्चिम में बांस पेटवाड़ गाँव हैं। इस गाँव के पास 1800 एकड़ जमीन है। गाँव की जमीन नहरी है जिसकी सिंचाई सुंदर ब्रांच नहर से होती है। सुन्दर ब्रांच नहर किसान नेता सर छोटू राम ने उस समय के सैनिक अधिकारी जनरल सुंदर सिंह के नाम पर 1942 ईस्वी में बनवाई थी। इस नहर की पानी की क्षमता 1800 क्युसिक है। इस नहर से इसी गाँव की सीमा से दो अन्य नहर जुई फीडर व मिथाथल फीडर और तीन रजबाहा (माइनर) भकलाना माइनर, उगालन माइनर और माली माइनर भी निकलती हैं। इस गाँव में एक उच्च माध्यमिक विद्यालय, एक पशुओं का अस्पताल, तीन आंगनवाड़ी, दो तालाब,एक मंदिर(शिवालय), एक धर्मशाला और पाँच चौपाल हैं। मोहला गाँव की कुल आबादी लगभग 3100 लोगों की है। इस गाँव में 300 लुहाच परिवार और 150 पन्नू परिवार रहते हैं।
वर्तमान चरखी दादरी के नाँधा गाँव में 19 वीं पीढ़ी के भैराज लुहाच के चार बेटे पैदा हुए। इनके नाम पहाड़ सिंह, गुगन सिंह, भैराज सिंह और नारायण सिंह थे। लगभग 1500 ईस्वी में पहाड़ सिंह पैंतावास चले गए। भैराज सिंह और गूगन सिंह महम होते हुए फरमाणा गाँव में आ गए। यहाँ पर कुछ समय गुजरा। उसी समय जींद जिले के उगालन गाँव में खरब गौत्र के लोग रहते थे। उनके पास कई हजार एकड़ का रकबा पड़ा था। इतना बड़ा रकबा सम्हालना खरब परिवार के लिए कठिन था। खरब परिवार की दो बेटियाँ लुहाच गौत्र और पन्नू गौत्र में ब्याही थी। इस नाते लुहाच व पन्नू गौत्र खरब गौत्र का भाणजा माना जाता था। इस लिए उगालन के खरब भाइयों ने पंजाब के गाँव नौसेरा पनवा में रहने वाले अपने पन्नू भाणजे को 18000 बीघा जमीन दे दी और मोहला गाँव में एक खेड़ा पर बसा दिया। इस प्रकार मोहला में खरब का खेड़ा माना जाता है। पन्नू परिवार को कुछ दिन ही आए हुए थे कि पड़ोस के गाँव पूठी से कुछ ब्राह्मण समाज के लोग मोहला आकर लूट पाट करते और उनकी बहू बेटियों को गलत नजर से देखने लगे। क्योंकि पूठी के लोग संख्या में ज्यादा व मजबूत थे इस लिए मोहला का पन्नू परिवार उनका मुकाबला करने में असमर्थ था। उसी समय पन्नू परिवार को पता चला की नाँधा से एक लुहाच परिवार चल कर फरमाना गाँव में रुका हुआ है। क्योंकि लुहाच भी पन्नू की तरह खरब के भाणजे हैं इस लिए फरमाना से लुहाच परिवार को अनुरोध कर अपने पास बसाया जाए ताकि पूठी के शरारती तत्वों से राहत मिल जाए। इस प्रकार मोहला के पन्नू भाइयों ने फरमाना आकर लुहाच परिवार को सब कहानी बताकर मोहला में बसने के लिए राजी कर लिया।
लुहाच परिवार ने एक शर्त यह रखी कि उनको कुल जमीन का 60% हिस्सा चाहिए और बचा 40% हिस्सा पन्नू परिवार के पास रहे। फिर पन्नू परिवार ने शर्त रखी कि हम आप को जमीन पूठी गाँव की सीमा की तरफ देंगे। इस प्रकार दोनों पक्ष सहमत हो गए।
इस प्रकार दोनों लुहाच भाई लगभग 1500 ईस्वी में नाँधा से चलकर फरमाना होते हुए मोहला गाँव में आकर बस गए। इस परिवार में भैराज लुहाच बड़े और गूगन सिंह लुहाच छोटे थे।दोनों भाई काफी ताकतवर व दिलावर थे। पन्नू और लुहाच परिवार मिलने से अब गाँव की ताकत और बढ़ गई। पूठी के शरारती ब्राह्मण पहले की तरह मोहला गाँव में आकर जोहड़-कुआं पर मोहला गाँव की बहू-बेटियों को गलत नजर से देखते और असामाजिक भाषा का प्रयोग करते। इस पर लुहाच व पन्नू परिवार ने उनको दोबारा इस गाँव में न आने की चेतावनी दी लेकिन शरारती लोग इस चेतावनी को अनसुना करके चले गए। फिर अगले दिन भी यही कहानी हुई। इस पर दोनों गाँव में खूब लड़ाई हुई। गूगन लुहाच बहुत ज्यादा गुसैल व निडर था। उसने एक शरारती तत्व को मार गिराया और बाकी सब लोग भाग गए। इसके बाद पूठी गाँव से भविष्य में कोई खतरा नहीं हुआ। पूठी गाँव में भी कुछ पन्नू रहते थे। इस घटना के बाद मोहला के पन्नू और पूठी के पन्नू, लुहाच गोत्र के बहुत आभारी हो गए। इसी कारण आज भी दोनों गाँव में बहुत ज्यादा भाई चारा है। लगभग एक साल बाद गूगन सिंह लुहाच वापस फरमाना होते हुए गिरावड़ गाँव में आकर बस गए। उस समय गिरावड़ में सिर्फ धाँधी गोत्र का परिवार ही रहता था।